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कैसा समाज? आपदा में अवसर और मरती इंसानियत

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आपदा में मिलकर लड़ना चाहिए, लेकिन कथित सभ्य समाज में आपदा को अवसर बना दिया गया। कालाबाजारी, जमाखोरी, मनमानी, दलालों की सक्रियता इसका उदाहरण हैं। वैसे ऐसे लोगों को भी नहीं पता कि वह पैसा कमाकर जिंदा बच पाएंगे। समाज में दोनों ही तस्वीरें हैं एक साथ छोड़ने वालों की और दूसरी साथ देने वालों की। जब इंसानियत जवाब देने लगे तो हालात बदतर हो जाते हैं। पहली तस्वीर यूपी के कानपुर की है जहां एक बेटे ने बीमार मां को बाहर का रास्ता दिखा दिया। वह बेटी-दामाद के पास पहुंची, तो उन्होंने सड़क पर छोड़ दिया, दुर्भाग्य से महिला अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन अपने पीछे मरती इंसानित और संवेदनाओं की कहानी छोड़ गई है। दूसरी तस्वीर आगरा की है जहां एक महिला ने अपने पति की जान बचाने के लिए मुंह से सांस तक दी, लेकिन कोशिशें नाकाम रहीं। ऐसे डॉक्टर भी हैं जो जान पर खेलकर मरीजों का इलाज कर रहे हैं। वैसे प्रयास आपदा से लड़ने के निःस्वार्थ और सामूहिक होंगे, तो परिणाम भी सुखद होंगे। अपनी व अपने परिवार की हिफाजत सबसे ज्यादा खुद कीजिए। यह वक्त भी बीत जाएगा।

दादा नाना थे देशभक्त खुद बना डॉन Mukhtar Ansari Ki Kahani

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 यूपी के गाजीपुर में जन्मा मुख्तार अंसारी कभी एक साधारण लड़का हुआ करता था। उसकी क्रिकेट में खास रूची थी। जब वह बैट लेकर मैदान में उतरता था, तो साथ के लड़के तालियां बजाया करते थे और कहते थे कि वह एक दिन नामी क्रिकेटर बनेगा, लेकिन जिंदगी कब किसको किस मोड़ पर ले जाए, इस बात को कोई नहीं जानता। मुख्तार के साथ भी, कुछ ऐसा ही हुआ। बुरी संगत ने उसे बिगाड़ दिया। गलत राह शुरूआत सिनेमाहाल में टिकट ब्लैक करने से हुई। मुख्तार की कहानी में सामाजिक पहलू यह है कि यदि टाइम से सही दिशा की तरफ कदम बढ़ाए होते, तो आज वह इस रूप में नहीं होता। मुख्तार के दादा डॉ0 मुख्तार अहमद अंसारी, गांधीवादी विचारधारा के पक्के देशभक्त थे। वह जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के फाउंडरों में से एक फाउंडर थे। उनके नाना ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान अंसारी देश के लिए आगे रहे। उन्हें महावीर चक्र भी मिला। मुख्तार अंसारी का परिवार रईस रहा है। वह यदि छात्र जीवन से सही रहता, तो वह नामी क्रिकेट प्लेयर बन सकता था। Watch Full Story- https://youtu.be/w_RQs4d7Yy4

अफसर बनना चाहता है Amroha Wali shabnam Ka Beta

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मैं शबनम को बेटा हूं, लेकिन मेरी परवरिश जिनके पास हो रही है, अब वहीं मेरे माता-पिता हैं। वह मुझे, दिल-ओ-जान से भी ज्यादा प्यार करते हैं। उनके साये में, मेरी ख्वाहिशें अधूरी नहीं हैं। इस पूरी दुनिया में, मेरे लिए एक वही तो हैं, जिन्होंने इंसानियत के नाते, बड़े दिल वाला बनकर मुझे अपनाया है। हमारी छोटी सी दुनिया खुशियों से आबाद रहे।  वह बेटा कुछ ऐसा ही कहता है। शबनम की कहानी का यह इकलौता सामाजिक पहलू है कि एक दंपत्ति उस्मान और वंदना ने उसे गोद लिया। उसके दिल में उम्मीदें हैं, उसकी आंखों में बहुत सारे अधूरे सपने हैं, जिन्हें वह पूरा करना चाहता है। उस्मान और वंदना भी उसके सपनों को पंख दे रहे हैं, क्योंकि यह बेटा अफसर बनना चाहता है। इस बेटे से जब हम मिले, तो लगा कि वह अपनी उम्र से भी ज्यादा समझदार है। शबनम ने भी उसे एक बात समझाई थी, कि तुम पढ़ लिखकर एक दिन, ईमानदार और नेक इंसान बनना। समाज की भी यह जिम्मेदारी होनी चाहिए कि वह कुछ ऐसा कतई न करे कि गुनाह करने वाली मां की कोख से जन्म लेने की कीमत किसी भी रूप में उसके बेटे को कतई न चुकानी पड़े। वह किसी भेदभव का शिकार न हो और उसकी परवरिश खूब बे...

मिस इंडिया रनरअप मान्या ने जीता लोगों का दिल Miss India runner-up Manya Singh won the hearts of the people

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एक मुकाम के बाद लोग समाज में बनावटी दिखावे के लिए, खुद को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं, लेकिन फेमिना मिस इंडिया 2020 की रनर अप का खिताब जीतने वाली मान्या सिंह ने, अपनी रियल लाइफ से, देश के लाखों लोगों का दिल जीत लिया। दरअसल उन्होंने अपने जज्बे और लग्न से खिताब जीता। इससे भी बड़ी बात यह कि वह अपने पिता के ऑटों में बैठकर ही मां के साथ सम्मान समारोह में पहुंची। उनके पिता आटो चलाते हैं, यह बात उन्होंने बिल्कुल नहीं छिपाई। मान्या ने अपने माता-पिता के पैर छुए और उन्हें गले भी लगाया। मान्या ने, यह संदेश दिया कि आपके हुनर के सामने सारा दिखावा छोटा पड़ जाता है और माता-पिता से बढ़कर कुछ नहीं होता। लोग मान्या के इस अंदाज के मुरीद हो गए।