खादी और खाकी की शह से बड़ा हुआ शातिर खलनायक विकास दुबे

उस रात जब पुलिस की गाड़ियां गांव के एक रास्ते पर जाकर रूकीं, तो उस वक्त पूरा गांव सन्नाटे और अंधेरे में डूबा हुआ था। कोई नहीं जानता था कि

वहां क्या होने वाला है। हाथों में हथियार थामे पुलिसकर्मी थोड़ा आगे बढ़े कि तभी पूरा गांव गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा। पुलिसकर्मी बचाव करते हुए जवाबी फायरिंग कर रहे थे, लेकिन दूसरी तरफ से मोर्चा लेकर गोलियों की बौछार की जा रही थी। जिससे संभलना मुश्किल हो गया पुलिसकर्मी गोलियों का शिकार हो गए, बाकी ने छिपकर या भागकर जान बचाई। सुबह तक पता चला कि बदमाशों से हुई मुठभेड़ में 8 पुलिसवाले शहीद हो गए थे। इसके साथ ही वारदात पूरे देश की सुर्खियों में आ गया। यूपी के कानपुर के चौबेपुर थाने के बिकरू गांव को देश के लोग 8 पुलिसकर्मियों से शहादत से पहले शायद ही जानते होंगे, लेकिन अब इस गांव और जो घटना का प्रमुख खलनायक विकास दुबे को लोग जान चुके थे, दशकों तक घटनाक्रम को याद किया जाएगा जिसके किस्से भी होंगे। घटनाक्रम किसी फिल्म की स्क्रिप्ट से भी बड़ा था। यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि कोई अपराधी आखिर इतना बड़ा कैसे हो गया था कि वह इस तरह पुलिस से मोर्चा लेकर सीधे गोलियां दाग दें। 
दरअसल जो तथ्य सामने आये उसके अनुसार पुलिस हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे के घर दबिश देने के लिए गई थी। पुलिस के आने की सूचना किसी विभीषण ने पहले ही उसे दे दी थी और उसने पुलिसकर्मियों पर वार कर दिया। वह पुलिस के एके-47 जैसे हथियार भी लूटकर ले गया। अपने इलाके में विकास बड़ा नाम था। बड़े नेताओं में उसकी घुसपैठ थी, तो छोटे नेता उसके सामने झुकते थे। उसके खिलाफ 70 से भी ज्यादा मुकदमें सामने आये हैं। वह थाने का हिस्ट्रीशीटर अपराधी था बावजूद इसके आजाद था। गांव में उसकी सल्तनत चलती थी। कोई उसके सामने बोलने की हिम्मत नहीं कर पाता था। अपनी चौपाल में बैठकर वह फैसले किया करता था। वह खुद भी चुनाव लड़ चुका था और उसकी पत्नी सपा के टिकट पर जिला पंचायत सदस्य थी। विकास का रिश्ता बसपा व सपा से रहा चुका था जबकि वह बीजेपी के नेताओं के संपर्क में था। इलाके के चुनाव में वह मतदाताओं का रूख बदलता था। बड़े नेता जहां उसे संरक्षण देते थे वहीं बेईमान पुलिसवाले उसकी जी हुजूरी करते थे। विकास का ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता था कि पूरे प्रदेश में एनकाउंटर होते रहे, अपराधियों के खिलाफ बड़े अभियान चलते रहे, लेकिन योगी सरकार की पुलिस के हाथ उसके गिरेबान तक नहीं पहुंचे, क्यों? यह तय है कि यदि खादी और खाकी ने उसे सह न दी होती, तो न तो वह इतना बड़ा अपराधी बनता और न ही आठ पुलिसकर्मियों की शहादत का किस्सा लिखा जाता। सच है कि खादी, खाकी और अपराधियों का गठबंधन किसी भी समाज के लिए हमेशा से घातक हुआ है। अच्छा तो यह हो कि खाकी, खादी वाले जो भी उससे मिलीभगत करके संरक्षण देते थे उनके खिलाफ भी सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। 

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