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इंसाफ तो कटघरे में डरकर कांप रहा है. इस वर्दी वाले गुंडे का चेहरा जरा गोर से देखीये. कोर्ट के बाहर ये बड़ी अजीब हंसी हंस रहा है. क्या कोई सजा पाने वाला मुजरिम इस तरह हँसता है? नहीं, लेकिन वो हँसता है जिसकी हार में भी जीत हो. यक़ी नन ये जनाब हरियाणा पुलिस के पूर्व डी.जी.पी एस. पी. एस. राठोर है. इन्हे टेनिस खिलाडी रुचिका गिरहोत्रा से १२ अगस्त १९९० में अश्लील हरकतों और आत्महत्या के लिये उकसाने के आरोप में ६ महीने की सजा हुई है. रुचिका गिरहोत्रा की उम्र केवल १४ साल थी. परेशान होकर रुचिका गिरहोत्रा ने २९ दिसंबर १९९३ को मोत को गले लगा लिया था. कोई अपनी सांसों की डोर यू ही नहीं नोचता. उसने ये कदम तब उठाया जब राठोर शिकायत वापसी न होने पर गुंडागर्दी पर उतर आये. इस बाला को स्कूल से निकाल दीया गया. उसके पिता को नोकरी से और इकलोते भाई को जेल जाना पड़ा. उसके खिलाफ १ दर्जन मुकदमे दर्ज करा दिए गए. घर भी संगीनों के साये में आ गया. रुचिका इस सब से हार गई और मोत का रास्ता चुन लिया. घटना के वक्त राठोर आई. जी. थे. हरियाणा की ओम प्रकाश चोटाला सरकार का पुलिस विभाग के दामन को दागदार करने वाले राठोर पर दि...
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आसाराम बापू संत है या भूमाफिया? आसाराम बापू... जी हाँ! आसाराम बापू एक एसा नाम जिसको सुनते ही लोग सम्मान से सिर झुका देते है आज उसी नाम को विवादों मे घसेटा जा रहा है. कोई उन्हें जमीन हड़पने वाला बता रहा है तो कोई भू- माफिया कह रहा है. कहते है साधू संतों का मोह, माया और स्वाद से कोई काम नहीं होता लेकिन यहाँ तो उलटी गंगा बह रही है. भक्ति का बाबा बाजार हमारे देश मे खूब फल फूल रहा है. धर्म और आस्था के नाम पर जनता हमेसा से लुटती आयी है. बस जनता की नब्ज टटोलने वाली शातिर उंगलिओ की जरूरत होती है. आसाराम बापू पर ६५ हजार वर्ग मीटर जमीन पर कब्ज़ा करने का आरोप है. कोर्ट ने जमीन को कब्ज़ा मुक्त करने के आदेश दिए है. इसके बाद गुजरात सरकार ने भी सख्त रुख अपना लिया है और नोटिस दे दिया है. शिकायतकर्ता कई साल से जंग लड़ रहा था, लेकिन बापू तो बापू थे. बापू के आश्रम पर आरोपों की लिस्ट लम्बी है. काला जादू और बच्चों के योन उत्पीडन के आरोप जग जाहिर है. बापू अपने ४० साल के भक्ति सफ़र में आज करोड़ों के मालिक है. अपनी दोलत का अंदाजा शायद उन्हें खुद भी ना हो क्योकि आरोप लगते ही वह उसे भक्तों की बता सकते है. उनकी सोह...
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खतरनाक मंसूबा तो नहीं था ना_पाक के राणा का? अमरीका में गिरफ्तार खुंकार आतंकवादी संगठन लश्कर- ए- तयबा का पाकिस्तानी मूल का कनेडियन नागरिक आतंकवादी तहवुर राणा जरायम के लिये बदनाम हो रहे पश्चेमी उत्तर प्रदेश के जनपद मेरठ भी आया था. ये राजफास होते ही हमेशा की तरह देर से जागने वाले खुफिया विभागों के कान खड़े हो गए है. इतना ही नहीं वह अपनी पत्नी समराज अख्थर के साथ हापुड़ और आगरा भी गया था. उसने अपनी नापाक नीगाहों से खूबसूरती की मिसाल ताज को देखा. तहवुर राणा आगरा के होटल वीरेन इंटरनेशनल के रूम नंबर १०१ में ४ लोगों के साथ रुका था. आगरा के डीआइजी आदित्त्ये मिश्रा भी इसकी पुष्टि करते है. नेशनल इन्वेस्तीगेसन एजेंसी और ए.टी.एस मेरठ और आगरा में डेरा डालकर जाँच में लगी है. मुंबई हमलो से पहले लश्कर आतंकी हेडली को मेरठ से मेल किये जाने का भी पता चला है. लेकिन उसको मेल करने वाला कोन था और उसका मकसद क्या था इसका अभी पता नहीं चल रहा है. साइबर अपराध से जुड़े लोग जाच कर रहे है. वसे आतंकवादियो से मेरठ का रिस्ता कोई नया नहीं है. सालों पहले इसकी नीव अब्दुल करीम और सलीम पतला ने डाल दी थी एन दोनों को ही आज तक पक...
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खतरनाक आगाज है या खतरनाक अंत ? * निर्दोष छात्र को पुलिस ने मुठभेड़ में मारा. * नाबालिग़ लड़की को सरेआम बाल पकड़कर घसीटा. * दसवी के छात्र का जुलुस निकाला. * पुलिस की पिटाई से त्रस्त युवक ने जहर खाया. दरअसल ये चंद घटनाएँ पुलिस की तालिबानी हरकतों का आइना भर है. अंग्रेजो ने भारत की जनता पर जुल्म करने के लिये जो फोर्स बनाई थी उसकी मानसिकता अभी तक नहीं बदली. पुलिस डंडे के बल पर जनता को नचाना चाहती है. थानों मे उसकी अपनी हुकूमत चलती है. नेनीताल मे हुई घटना इस बात का सबूत है की जब जुल्म हदों को लाँघ जाता है तो जनता का गुस्सा कुछ इसी तरह निकलता है. ये बड़े खतरे का संकेत भी है. जनता और पुलिस के बीच बनी खाई भरने वाली नहीं है. कियोकी पुलिस अपने आचरण मे सुधार ही नहीं लाना चाहती. सवाल ये है की खुद कानून के रखवाले कानून का कितना पालन करते है? थाने मे हत्या हो जाना कोई मजाक नहीं है. इसमे कोई दोराय नहीं उत्तराखंड की जनता उत्पातों की अदि नहीं है. ये गुस्सा कोई एक दिन या साल का नहीं था. बल्कि उसके अन्दर एक गुबार एकत्र हो रहा था. ये खतरनाक आगाज है या खतरनाक अंत कहा नहीं जा सकता. इतना जरूर है की पुलिस को...

...और बीमार हो गए मधु कोड़ा

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झारखण्ड के पूर्व सीएम मधु कोडा की काली कमाई का किला गिर चुका है. इनकम टेक्स खुद भी मन रहा है की उनकी कमाई का किला ४००० करोर का हो सकता है. कमाल ही कर डाला जनाब ने. इतनी रकम मे झारखण्ड का तो विकाश होता ही दूसरो का भी भला हो जाता? अब जनाब पेट दर्द का बहाना कर अस्पताल मे भारती है. बोलने वालो को कोन रोके जो कह रहे है कि जिसका हाजमा इतना तगड़ा हो वो भला पेट दर्द का शिकार केसे हो सकता है? वेसे उनका आवाश तो अभी इनकम टेक्स ने ही कब्जा रखा है. ऊपर से अधिकारी सिर दर्द कर रहे है. आगे का तनाव अलग है. तो गिर इससे अछा तो पेट दर्द ही है. यकीनन यदि काली कमाई वालों के लिये कोई बड़ा पुरुस्कार होता तो कोडा साहब भी उसके हक़दार होते. वर्ना वो सर्त लगाते कि बोल कोन कितना बड़ा........जो हो रहा है उससे उनकी पत्नी गीता जरूर परेशान है. कोडा कि मण्डली पर भी इनकम टेक्स ने अपनी नजरे गडा दी है. बहरहाल झारखण्ड के जीतने अधिकारियो पर भी अवैध कमाई के मामले चल रहे हो उनको माफ़ कर देना ज़यादा ठीक है कयोकि यहाँ तो पूरी दाल ही काली है. झारखण्ड के इतिहास मे इन सर्मनाक और काले दिनों को कभी भुलाया नहीं जा सकता.

सलाखों के पीछे मंडराती मौत.......

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अंधे बहरों की बस्ती मे यहाँ कोन किसी की सुनता है, माहोल सुनेगा देखेगा जिस वक्त बजेंगी जंजीरें. मरहूम शायर हफीज मेरठी का यह शेर शायद आने वाले वक्त को याद करने के लिये मजबूर करता है. गाजियाबाद की डासना जेल मे हुई २३ करोड़ के घोटाले के आरोपी आसुतोष अस्थाना की मौत हमारे पूरे तंत्र पर एक बड़ा सवाल है. कितने ताज्जुब की बात है की २३ करोड़ के उस घोटाले के आरोपी की खामोसी से मौत हो जाती है जीसमे न्याए विभाग के 33 अफसर फंसे हो. सभी इस कड़वी हकीकत को जानते है की अस्थाना साजिश का शिकार हुए है. अरुशी कांड की तरह साजिश के सरताजों की इस मामले मे भी कोई कमी नहीं है. उनके पास रसूख है, ताकत है, धन और बल है. सवाल ये नहीं की कोन भ्रस्ट है? बल्कि सवाल तो ये है की कोन कितना बड़ा भ्रस्ट है? इन सरताजों को शायद ही शिकंजे में लिया जा सके? जेलों के हालत किसी से छिपे नहीं है. हमारी जेले कानून से भी बड़ी सजा देती है. सलाखों के पीछे कब किसकी मौत के परवाने पर दस्तखत हो जाये इस बात को कोई नहीं जनता. सत्ता के गलियारों की चांदनी रही कविता की हत्या के आरोपी रविंदर की मौत का राज भी इसी जेल मे दफ़न है. कमाल देखीये जेल के ...