परिवार के झगड़े पड़ रहे हैं जिंदगी पर भारी, बढ़ते सुसाइड केस
परिवार के झगड़े जिंदगी पर भारी पड़ रहे हैं। यूपी में एक युवा आईपीएस ने जहर खाया। वह जिंदगी की जंग हार गया। पत्नी ने जमाष्टमी पर भी
नॉनवेज मंगाकर खाया जबकि पति को यह पसंद नहीं था। एक साधारण परिवार का लड़का विधवा श्माँश् को अपने पास रखना चाहता था। अपनी उन बहनों व भाई के लिए भी कुछ करना चाहता था जिन्होंने उसे इस मुकाम पर पहुंचायाए लेकिन डॉक्टर पत्नी ऐसा नहीं चाहती थी। पत्नी को ससुराल पसंद नहीं था। एक माँ अपने बेटे की आवाज सुनने को तरसती थी। एकण्एक पैसा जोड़कर उन्होंने उसे पढ़ाया था। श्स्टेटसश् की रेखा दीवार बनी थी। होनहार बेटा सुरेंद्र कुमार दास बुरी तरह टूट गया। यह किसी एक परिवार या व्यक्ति का किस्सा नहीं है। हर पल किसी न किसी परिवार में यह सब चल रहा होता है। समाज में लोगों की यह प्रवृत्ति बन गई है कि उन्हें शादी के लिए लड़का तो अच्छा चाहिएए लेकिन वह उन अपनो से रिश्ता न रखे जिन्होंने उसे पैदा कियाएपढ़ाण्लिखाकर किसी काबिल बनाया। लड़का इकलौता होए तो नजरें ज्यादा ठहरती हैं। लड़का बुरी तरह से पिसता है। मुकदमे में फंसाने की धमकिया अलग होती हैं। अकेले बुजुर्गों की तादाद बढ़ रही है। घरों व रिश्तों के टूटनेण्बिखरने के किस्से आम हैं। क्यों भूल जाते हैं कि एक पति किसी का बेटा और भाई भी होता है। परिवार के लोगों को पति से दूर करनाए घर बिखेरना कोई हुनर नहींए बल्कि एक खतरनाक रोग और बेवकूफी है। कई चालाक माताण्पिता बेटी को पहले से ही कहकर चलते हैं कि उसके लिए वह अच्छी नौकरी वालाण्ण्ण् अकेला लड़का ढूंढेंगें जहां वह राज करेगी। लड़के के परिवार से क्या लेनाए उन्हें तो सिर्फ लड़के से मतलब है जो कठपुतली की तरह काबू रहना चाहिए। सबक उन महिलाओं से लिया जाएए जो अपनी सूझबूझ और हुनर से घरों को जोड़कर खुशहाल जिंदगी जीती हैंए लेकिन दुर्भाग्य से उनकी मिसाल नहीं दी जाती। आधुनिकता के दौर में यह सभ्य समाज की कड़वी व शर्मनाक हकीकत है। सोचना चाहिए कि किस दिशा में जा रहा है समाज। जहां संस्कार और सोच सबको साथ लेकर चलने वाली होगी वहां बिखरावए अहमए अलगाव व तनाव होगा ही नहीं।
नॉनवेज मंगाकर खाया जबकि पति को यह पसंद नहीं था। एक साधारण परिवार का लड़का विधवा श्माँश् को अपने पास रखना चाहता था। अपनी उन बहनों व भाई के लिए भी कुछ करना चाहता था जिन्होंने उसे इस मुकाम पर पहुंचायाए लेकिन डॉक्टर पत्नी ऐसा नहीं चाहती थी। पत्नी को ससुराल पसंद नहीं था। एक माँ अपने बेटे की आवाज सुनने को तरसती थी। एकण्एक पैसा जोड़कर उन्होंने उसे पढ़ाया था। श्स्टेटसश् की रेखा दीवार बनी थी। होनहार बेटा सुरेंद्र कुमार दास बुरी तरह टूट गया। यह किसी एक परिवार या व्यक्ति का किस्सा नहीं है। हर पल किसी न किसी परिवार में यह सब चल रहा होता है। समाज में लोगों की यह प्रवृत्ति बन गई है कि उन्हें शादी के लिए लड़का तो अच्छा चाहिएए लेकिन वह उन अपनो से रिश्ता न रखे जिन्होंने उसे पैदा कियाएपढ़ाण्लिखाकर किसी काबिल बनाया। लड़का इकलौता होए तो नजरें ज्यादा ठहरती हैं। लड़का बुरी तरह से पिसता है। मुकदमे में फंसाने की धमकिया अलग होती हैं। अकेले बुजुर्गों की तादाद बढ़ रही है। घरों व रिश्तों के टूटनेण्बिखरने के किस्से आम हैं। क्यों भूल जाते हैं कि एक पति किसी का बेटा और भाई भी होता है। परिवार के लोगों को पति से दूर करनाए घर बिखेरना कोई हुनर नहींए बल्कि एक खतरनाक रोग और बेवकूफी है। कई चालाक माताण्पिता बेटी को पहले से ही कहकर चलते हैं कि उसके लिए वह अच्छी नौकरी वालाण्ण्ण् अकेला लड़का ढूंढेंगें जहां वह राज करेगी। लड़के के परिवार से क्या लेनाए उन्हें तो सिर्फ लड़के से मतलब है जो कठपुतली की तरह काबू रहना चाहिए। सबक उन महिलाओं से लिया जाएए जो अपनी सूझबूझ और हुनर से घरों को जोड़कर खुशहाल जिंदगी जीती हैंए लेकिन दुर्भाग्य से उनकी मिसाल नहीं दी जाती। आधुनिकता के दौर में यह सभ्य समाज की कड़वी व शर्मनाक हकीकत है। सोचना चाहिए कि किस दिशा में जा रहा है समाज। जहां संस्कार और सोच सबको साथ लेकर चलने वाली होगी वहां बिखरावए अहमए अलगाव व तनाव होगा ही नहीं।
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