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इंद्राणी मुखर्जीः अपने ही बुने जाल में फंस गई शातिर औरत

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अर्श से फर्श पर गिरकर कैसी तड़प होती है? इस हकीकत को सलाखों के पीछे अपने ही बुने जाल में फंसी इंद्राणी से बेहतर शायद ही कोई दूसरा बता पाए। जेल की जिंदगी उसे कांटे की तरह चुभ रही है और वह बाहर निकलने के लिए छटपटा रही है। इंद्राणी मुखर्जी कभी गुवाहटी की एक मामूली लड़की हुआ करती थी। वह आधुनिकता की अंधी दौड़ में शरीक होने का ख्वाब देखती थी। ऐसे ही ख्वाब ने उसे अति महत्वाकांक्षी बना दिया। उसने नारी सीमाओं को ताक पर रखा ओर रिश्तों के अजीब जाल में उलझती चली गई। उसकी किस्मत के सितारे बुलन्दी पर पहुंचे, तो एक दिन इंद्राणी मीडिया जगत की नामी हस्ती बन चुकी थी। दौलत उसके कदम चूमती थी ओर वह दुनिया की 50 पावरफुल महिलाओ की सूची में शामिल थी। शोहरत व दौलत के शिखर पहुंचकर संतुलन बनाए रखना हर किसी के वश में नहीं होता। इंद्राणी पर भी दौलत व शोहरत का ऐसा नशा हावी हुआ कि वह सुधुबुध खो बैठी। उसने एक बड़ा गुनाह करके राज को ही दफन कर दिया, लेकिन राजदार रहा शख्स उसका ड्राइवर श्यामराय हथियार तस्करी मामले में पुलिस पकड़ा गया, तो उसने ऐ सा राजफाश किया जिसने पूरे देश में तहलका मचा दिया। मुंबई की खार पुलिस ने इ...

अफशां एक खतरनाक औरत, जवान लड़कों को फंसाती से जाल में

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नामः अफशां जबीन उर्फ निकी जोसेफए उम्ररू 37 साल। गुनाहः आतंकी संगठन में भर्ती के लिए युवकों को उकसाना।  अंजामः जेल की सलाखों के पीछे। जी हा! फोटो में दिख रही इस महिला का प्रोफाईल कुछ ऐसा ही है। आइएस की पहली भारतीय एजेंट खतरनाक इरादों की वारिस अफशां फेसबुक के जरिए नौजवान युवकों को फंसाने का जाल बिछाती थी ओर उन्हें सीरिया ओर इराक में जड़े जमा चुके खूंखार आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट ;आइएस के लिए जिहादी बनाकर भर्ती कराती थी। वह न सिर्फ ऑनला इन भर्ती कर रही थी बल्कि आइएस के खूंखार इरादों ओर कारनामों का प्रचार भी करती थी। झूठे ढंग से खुद को ब्रिटिश नागरिक बताने वाली अफशां हैदराबाद की रहने वाली थी। उसने इंटर आबूधाबी से किया ओर पुनः इंडिया आ गई। बाकी पढ़ायी कर वह यूएई चली गई। दुबई भी उसका ठिकाना था। अफशां खुफिया एजेंसियों के रडार पर तब आयी जब आतंकी संगठन के लिए काम करने वाले अमेरिका से आए एक इंजीनियर सलमान को हैदराबाद एयरपोर्ट से गिरफ्तार किया गया। उसने ही अफशां के कारनामें बताये। उसे संयुक्त अरब अमीरात से प्रत्यर्पित कर गिरफ्तार किया गया। इन्वेस्टीगेशन एजेंसीज की पूछताछ के बाद यह महिल...

अंजानों पर न करें विश्वासः प्रेमी जोड़े के साथ हो गया विश्वासघात

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दिल्ली में रह रहे ग्राफिक डिजाइनर अभिजीत व उसकी चित्रकार दोस्त आर्ट टीचर मोमिता समुंद्र तल से 6730 फुट की ऊंचाई पर बसे उत्तराखंड के प्रमुख लोकप्रिय पर्यटन स्थल चकराता घूमने गए। वहां उनकी मुलाकात एक टैक्सी चालक से हुई। दोनों उस पर विश्वास करके वह ऐसी भूल कर बैठे जिसकी कीमत उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। आर्थिक रूप से सम्पन्न दास दंपत्ति की 28 वर्षीय बेटी मोमिता केरियर बनाने के लिये दिल्ली गई। वहां उसकी दोस्ती चित्रकार अभिजील पॉल से हो गई। दोनों के शौक एक जैसे थे। लिहाजा उनकी दोस्ती प्यार में बदल गई। मोमिता को प्राकृतिक सौन्दर्य से प्यार था। वह फोटोग्राफी के लिए घूमा करती थी। एक सुबह उसने पिता को फोन करके बताया, ‘‘पापा मैं आज उत्तराखंड के चकराता जा रही हू।’’ ‘‘क्यों?’’ ‘‘बस घूमने ओर अच्छे फोटोग्राफ के लिये।’’ ‘‘अकेली जाओगी?’’ ‘‘नहीं पापा मेरे साथ अभिजीत है।’’ एक दिन बाद सब परेशान हो गए जब मोमिता का फोन नहीं मिला। उन्होंने उसकी गुमशुदगी दर्ज करा दी। दिल्ली पुलिस टीम उत्तराखंड गई। उत्तराखंड पुलिस ने जांच की। मोमिता के मोबाइल की अंतिम लोकेशन चकराता पायी गई। मोमिता ने एक स्थानीय ...

लिफ्ट का बहाना, आप कहीं खूबसूरत हसीनाओं से लुट न जाना

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अगर आप राष्ट्रीय राजमार्गों पर अपने या अनजान वाहनों से सफर करते हैं और लिफ्ट लेने या देने में यकीन रखते हैं तो सावधान हो जाइए. क्योंकि इन दिनों राह चलते लूटमारी करने वाले गैंग विविध वेशों और परिस्थितियों में आप को लूट या हत्या का शिकार बनाने के लिए मंडरा रहे हैं. आप घर से दफ्तर, किसी टूर या अन्य काम से निकलते हैं तो घर सुरक्षित वापस आ जाएंगे या किसी अनहोनी का शिकार नहीं होंगे, इस बात की कोई गारंटी नहीं. वाहन नहीं है तो हो सकता है रास्ते में कहीं लिफ्ट लें और यदि वाहन है तो हो सकता है दयाभाव मन में आए और आप किसी को लिफ्ट दे दें लेकिन लिफ्ट का चक्कर कई बार माल और जान दोनों पर भारी पड़ जाता है. राहजनी करने वालों की गिद्ध दृष्टि सड़कों पर शिकार तलाशती रहती है और आप को पता भी नहीं चलता. जो जाल में फंसता है उसे कोई नहीं बचा सकता. राष्ट्रीय राजमार्गों पर ऐसे कई खतरनाक गिरोह सक्रिय हैं जो लिफ्ट दे कर लोगों को लूटते हैं. मामूली लालच में वे हत्या करने से भी नहीं चूकते. चारपहिया वाहन चालकों से लिफ्ट लेने में भी ये माहिर खिलाड़ी होते हैं. वाहन चालक झांसे में आ जाए, इस के लिए वे अपने साथ म...

क्योंकि अब्दुल कलाम निर्विवाद इंसान थे!

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-नितिन शर्मा ‘सबरंगी’ देश के 11 वें राष्ट्रपति मिसाइलमैन डॉ0 ए0पी0जे0 अब्दुल कलाम को यकीनन कभी भुलाया नहीं जा सकता। उन्हें देश के लोग इसलिए भी ज्यादा पसंद करते थे क्योंकि उनके विचार जाति-धर्म से ऊंचे थे और वह निर्विवाद थे। वह इस बात की मिसाल भी थे कि एक मामूली गरीब परिवार से किस तरह उन्होंने बुलन्दियों को छुआ। ऐसे लोग कम ही होते हैं जो हौंसलों की उड़ान इस तरह भरते हैं।  18 जुलाई, 2002 को डॉक्टर कलाम को नब्बे प्रतिशत बहुमत द्वारा 'भारत का राष्ट्रपति' चुना गया था और इन्हें 25 जुलाई 2002 को संसद भवन के अशोक कक्ष में राष्ट्रपति पद की शपथ दिलाई गई। इस संक्षिप्त समारोह में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, उनके मंत्रिमंडल के सदस्य तथा अधिकारीगण उपस्थित थे। इनका कार्याकाल 25 जुलाई 2007 को समाप्त हुआ। भारत के अब तक के सर्वाधिक लोकप्रिय व चहेते राष्ट्रपतियों में से एक डॉ. अबुल पाकिर जैनुलआब्दीन अब्दुल कलाम ने तमिलनाडु के एक छोटे से तटीय शहर रामेश्वरम में अखबार बेचने से लेकर भारत के राष्ट्रपति पद तक का लंबा सफर तय किया है। पूर्व राष्ट्रपति अवुल पकिर जैनुल्लाब्दीन अब्दुल ...

प्यार की राह में बर्बाद हुई लड़की, शबनम तुम्हें फांसी जरूरी है

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‘शबनम ओर उसके प्रेमी सलीम के हक में मौत की सजा मुकर्रर की जाती है। इन दोनों को तब तक फांसी पर लटकाया जाये जब तक इनकी मौत न हो जाए’ कुछ इसी तरह न्यायाधीश ने एक डबल एमए युवती शबनम और उसके प्रेमी के हक में फांसी की सजा पर मुहर लगा दी। दरअसल शबनम उत्तर प्रदेश के जनपद मुरादाबाद के समीपवर्ती जनपद अमरोहा के बामनहेड़ी गांव की रहने वाली थी। वह नजदीक ही रहने वाले एक लड़के समीम से प्रेम करती थी। शबनम के पिता पेशे से शिक्षक थे। उन्होंने अपने  बच्चों को भी ऐसी ही तालीम दी। नतीजन दो बेटे इंजीनियर बन गए जबकि शबनम डबल एमए करके शिक्षा मित्र बन गई। शबनम अपनी मर्जी से निकाह करना चाहती थी और पिता की पूरी प्रापॅर्टी पर अपना हक भी। परिवार के जिंदा रहते यह मुमकिन नहीं लिहाजा वर्ष 2005 में एक रात उसने व उसके प्रेमी ने कुल्हाड़ी से गले काटकर अध्यापक पिता, माँ, इंजीनियर भाई, दूसरे भाई, भाभी, मासूम भतीजे व एक रिश्तेदार लड़की का कत्ल किया। पूरे परिवार में सिर्फ शबनम ही जिंदा बची थी। अपने समय का यह सामूहिक नरसंहार बेहद चर्चित कांड रहा। तत्कालीन मुख्यमंत्री सुश्री मायावती को भी मौके पर आना पड़ा। पुलिस को कत्ल ...

सलमान खानः शिकार से सजा तक, कानून सभी के लिए बराबर

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लंबी जद्दोजहद के बाद हिट एंड रन मामले में आखिर दोषी पाए जाने के बाद बॉलीवुड स्टार सलमान खान के हक में अदालत ने 5 साल की सजा मुकर्रर कर दी। इसको लेकर बहस शुरू हो गई। वास्तव में अदालत सबूतों और गवाहों पर काम करती है नकि भावनाओं का कोई स्थान होता है। इंसाफ के प्रति लोगों की उम्मीदों का चिराग और रोशन हुआ है। सभी को कानून का सम्मान करना चाहिए। नेता, अभिनेता, आम आदमी कानून तो सभी के लिए बराबर है। यह ठीक है कि सलमान अभिनेता हैं, लोगों के दिलों में उनके लिए जगह हैं, लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि उन्हें कुछ भी करने की आजादी हो या पुराने गुनाहों पर पर्दा डाल दिया जाए। सलमान चूंकि रॉल मॉडल हैं इसलिए उनकी जिम्मेदारी कानून का पालन करने की ज्यादा हो जाती है। अजीब तर्क दे रहे हैं लोग। कोई कहता है कि सलमान गरीब बच्चों की बहुत मदद करते हैं, उनका ख्याल रखते हैं। वह बहुत अच्छे हैं। भला इन सब बातों का केस से क्या मतलब। इस आधार पर क्या उन्हें छूट मिलनी चाहिए थी। सलमान जो भी करते हैं उसकी रकम लेते हैं। ऐसा सक्षम व्यक्ति यदि गरीब बच्चों की मदद करता है, तो यह बहुत अच्छा है। जो भी सक्षम हैं उन्हें ऐसा क...

ऐसी भी क्या राजनीति, मौत पर ‘आप’ की शर्मनाक सियासत

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 दिल्ली के जंतर-मंतर पर आम आदमी पार्टी की रैली में सरेआम फांसी लगाने वाले गजेन्द्र की मौत एक मुद्दा बन गई है। कितनी अजीब बात है कि हजारों लोगों के सामने एक शख्स रफ्ता-रफ्ता भाषणबाजियों के बीच अपनी सांसों की डोर को तोड़कर मौत की चौखट पर चला जाता है ओर सब मौत का लाइव तमाशा देखते हैं। कथित ईमानदार पार्टी के नेता, कार्यकर्ता, पुलिस व लोकतंत्र का चौथा खंबा मीडिया भी मुस्तैदी से उस वक्त मौजूद था। इंसानियत की गिरावट का शायद यह सबसे निचला पायदान है या दूसरे शब्दोें में कोढ़ग्रस्त इंसानियत की हकीकत। क्योंकि गजेन्द्र के साथ इंसानियत का भी सरेआम जनाजा निकला। गजेन्द्र अब इस दुनिया में नहीं है। उसकी मौत एक बड़ा मुद्दा ओर सवाल है। राजनीति, संवेदनाओं के साथ ही वादों का सिलसिला भी चलता रहेगा, लेकिन उसके परिवार का दुःख शायद ही कम हो।  तेजी से मुकाम हासिल करने वाली आम आदमी पार्टी ने प्रचार के बाद हजारों की भीड़ जुटाई। रैली का मकसद खुद को किसानों का सबसे बड़ा हितैषी घोषित करना था। विपक्षियों की नीतियों पर सवाल उठाना था। तीखे प्रहार करना था। पूर्व में कई पार्टियों से ताज्लुक रखकर एमएलए का चुनाव...

हुजूर! 42 कत्ल के कातिल भी तो होंगे?

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- पीड़ितों के दर्द पर जमकर होती रही सियासत। - हाशिमपुरा कांड में 28 साल बाद आया फैसला। -नितिन शर्मा ‘सबरंगी’ 1987 में मेरठ दंगे के दौरान हुए बहुचर्चित हाशिमपुरा कांड में 42 लोगों की मौत पर दिल्ली की तीस हजारी अदालत ने सबसे पुराने पेंडिंग केस में फैसला देकर सभी 16 आरोपियों को बरी कर दिया। 3 आरोपियों की मौत फैसले से पहले ही हो गई। फैसला हैरानी व नाखुशी दे रहा है। अदालत के दहलीज के बाहर यह हैरानी जरूरी भी है क्योंकि मानवता को शर्मसार करने वाले कांड में 28 साल बाद आये फैसले में भी कोई दोषी नहीं मिला। सरकारी तंत्र  ओर पैरवी के नकारेपन का इससे बड़ा सुबूत भला ओर क्या होगा। सवाल यह कि कत्ल हुए तो कातिल भी तो होंगे, लेकिन अदालती फैसले सुबूतों ओर गवाहों  की रोशनी में आते हैं। कानून भावनाओं से नहीं चलता वरना मौत का मंजर देखने वाली आँखों में इंसाफ की तड़प जरूरी दिखती। मांओं ओर बेवाओं का दर्द भी दिखता। रोजी-रोटी का संकट, घर के चिरागों के बुझने से हुआ अंधेरा ओर दुआओं में सिर्फ इंसाफ मांगते बूढे माँ-बाप दिखते। हाँ राजनीति के बाजीगर ऐसे दर्द को वोटों के मुनाफे के लिए वक्त-वक्त पर जरूर ...
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‘मुफ्त’ के सपनों की बड़ी चुनौती -जनतंत्र उम्मीदों के जहाज पर सवार  -जनता के तराजू में संतुलित होना जरूरी। -नितिन शर्मा ‘सबरंगी’ दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल की जीत को प्रचंड, अविश्वसनीय, अद्भुत या अप्रत्याशित कुछ भी नाम दीजिए, लेकिन जनतंत्र ने उम्मीदों से उन्हें अपने राज्य के मुखिया के रूप में चुन लिया। यकीनन यह एक लहर थी जो अचानक नहीं बल्कि तब आयी जब जनता की सही नब्ज को पकड़ा गया। उसके बताया गया कि ‘मै आप हूं, वह करूंगा जो आप चाहते हो।’ जनतंत्र सबसे बड़ी ताकत है इसलिए सत्ता के ताज के ख्वाहिशमंद को पहले उसके सामने झुकना पड़ ता है। जनता बड़ी उम्मीदों से वोटों का ताज देती है। बेचारगी के हालातों में उसका यही इकलौता हथियार होता है। जनतंत्र की ताकत को हासिल करने के लिये केजरीवाल ने तमाम आलोचनाओं, धरनों, बयानबाजियों, टकराव ही नहीं बल्कि थप्पड़ और काली स्याही का भी सामना किया। सभ्य समाज व स्वस्थ लोकतंत्र में वार व काली स्याही जैसी हरकतें निदंनीय थीं। जनता की उम्मीदों को हद दर्जे तक जगाया गया। यह हुनर ही सही, लेकिन केजरीवाल ऐसे हुनर के बाजीगर हैं जो सबकुछ बदलने की बात क...