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मार्च, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
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ऑनर किलिंग एक खूनी सिलसिला -अपने ही करते हैं अपनों का कत्ल -इज्जत की खातिर होता  खूनी खेल क्या कोई पिता अपनी ही बेटी के सिर को काटकर धड़ से अलग कर सकता है, क्या कोई भाई अपनी बहन को गोली से उड़ा सकता है? क्या कोई माँ बेटी के खून से हाथ रंग सकती है? क्या लोग किसी को सरेआम फांसी पर लटका सकते हैं? यह सवाल तुगलकी है, लेकिन इस दिल दहला देने वाली हकीकत का आइना अक्सर देखने को मिल रहा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश ओर हरियाणा में पुलिस के रोजनामचे में सैंकड़ों कत्ल ऐसे दर्ज हैं जिनकी मौत के परवानों पर अपनों ने ही दस्तख्त कर दिये। प्रेमी युगलों के नसीब में मौत दर्ज करने वाले अपने ही होते हैं। प्रेम करना गुनाह है क्योंकि पुरातन मान्यताएं, संस्कार ओर परंपराएं इसकी इजाजत नहीं देती। समाज के ठेकेदार कबिलाई अंदाज में कानून को ठेंगा दिखाकर चौंकाने वाले फैंसले देते हैं। खूनी खेल खेलते वक्त उन्हें कानून का डर नहीं सताता। प्रेमी युगलों की हत्याएं यूं तो समाज में कथित इज्जत को बचाने की खातिर की जाती हैं, लेकिन क्या कत्ल कर देने से इज्जत बच जाती है? इस सवाल का जवाब कई वर्षों की पत्रकारिता में मैं खुद भी नहीं...