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मार्च, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
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इश्क के जुनून में खानम का खून -नितिन सबरंगी जरायम को लेकर भी बदनाम हो रहे उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में प्रतिदिन की भांति उस दिन भी लोग अपनी दिनचर्या में व्यस्त थे। बस अड्डों पर आमतौर पर मुसाफिरों की भीड़ जमा रहती है। सोहराब गेट बस अड्डे पर भी दोपहर के वक्त सैंकड़ों मुसाफिर मौजूद थे। खुर्जा-बुलन्दशहर को जाने वाली रोडवेज बस आकर खड़ी हो गई। इस बस का नंबर था यूपी 15 एटी-1593। बस के रूकते ही एक-एक कर उसमें दर्जनों लोग सवार हो गए। खूबसूरत दिखने वाली एक दुबली-पतली युवती भी बस की तरफ बढ़ी। युवती नीले रंग की जींस ओर छींटदार कुर्ता पहने हुए थी। यह लिबास उस पर खूब फब रहा था। एक तो खूबसूरती दूसरे उसका लिबास ये दोनों ही चीजे ऐसी थीं जो यात्रियों का ध्यान उसकी तरफ खींच रहीं थीं। युवती के कंधे पर पर्स झूल रहा था। वह युवती अकेली नहीं थी उसके साथ अधेड़ महिला भी थी। पहली ही नजर में देखकर लग रहा था कि दोनों के बीच कोई बेहद नजदीकी रिश्ता था। बस तैयार खड़ी थी। वह दोनों भी उसी बस में सवार हो गईं। उनके चढ़ते ही परिचालक ने सरसरी सी नजरें डालकर पूछा,‘‘कहां जाना है आपको?’’‘‘भैया बस गुलावठी तो जायेगी ना?’’ युवती के ...
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इंतकाम की आग -नितिन सबरंगी (बिजनौर यूपी का बहुचर्चित कांड) दुनिया की तमाम हलचल से बेखबर पूरा गांव नींद के आगोश में था। रात्रि का दूसरा पहर शुरू हो चुका था। वक्त तो नींद का ही था, लेकिन 17 साल की फातिमा व उसके पिता अख्तर की आँखों से नींद कोसों दूर थी। दोनों के ही मनों में तूफान सा उठ रहा था। एक ऐसा तूपफान जो शांत होने का नाम नहीं ले रहा था। उसके दिल-ओ-दिमाग पर पंचायत और उसके फैसले की यादें रह-रहकर ताजा हो रहीं थीं। अपमान व तिरस्कार ने उन्हें झकझोर दिया था। करवटेें बदल-बदलकर दोनों को कब नींद आ गई इसका पता उन्हें भी नहीं चल सका। फातिमा ने जो कुछ भी देखा था वह दिल को दहला देने वाला था। वह अपने पिता के कमरे में सो रही थी। तभी उनका पड़ोसी राशिद व उसका बड़ा भाई हसीनुद्दीन दबे पांव वहां आ गये। कुछ आवाज सुनकर उसकी आंख खुली तो देखा तो उनके हाथों में खून से सनी कटार चमचमा रही थी और वह खा जाने वाली नजरों से उसे घूर रहे थे। फातिमा की निगाह जमीन पर पड़ी तो हलक से चीख निकल गई। खून से लथपथ उसका पिता अख्तर जमीन पर पड़ी किसी मछली की तरह तड़प रहा था। फातिमा से यह सब देखा नहीं गया वह फुर्ती से खड़ी हुई और उसन...
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जम्मू-कश्मीर का अमीना-रजनीश प्रकरण मोहब्बत का अधूरा सफर -नितिन सबरंगी प्राकृतिक सौन्दर्य की गोद में बसे श्रीनगर की अमीना मराजी व जम्मू के राजेश उर्फ रजनीश शर्मा में प्यार हुआ, तो उन्होंने साथ जीने-मरने की कसमें खायीं। आग के दरिया में तैरकर दोनों ने मजहब की दिवारे गिराकर शादी भी कर ली। अमीना धर्म बदलकर आंचल शर्मा हो गई। इससे उसके परिजन दुश्मन बन गए। दोनों के जीवन में खुशियां शायद एक महीने की ही मेहमान थी। पुलिस ने राजेश को हिरासत में लिया, तो उसकी लाश हवालात में लटकी पायी गई। आंचल पर जैसे मुसीबतों को पहाड़ टूट पड़ा। सुर्खियों में आये इस मामले ने जम्मू-कश्मीर में हड़कम्प मचा दिया। गमजदा आंचल को इंसाफ दिलाने के लिये धर्मिक संगठन भी मैदान में उतर आये। आंचल ने हत्या का आरोप लगाकर अपने परिजनों व पुलिस के खिलाफ जंग शुरू कर दी, लेकिन अचानक एक दिन वह घर से लापता हो गई। अगले दिन जब मिली तो फिर से अमीना बन चुकी थी। अमीना की किस्मत ने जो खेल उसके साथ खेला उसमें वह खुद उलझकर रह गई। राजेश यदि इस दुनिया में होता, तो अमीना शायद ही मोहब्बत में दगा करती। (प्रकाशित मनोहर कहानियाँ मार्च,2010 अंक में) *- ...
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खूंखार आतंकी को मारने वाली रूखसाना- लड़कियां ऐसी भी होती हैं -नितिन सबरंगी भारत पाकिस्तान के बार्डर से सटे प्राकृतिक सौन्दर्य की गोद में सिमटे राज्य जम्मू-कश्मीर का आतंकवाद से रिश्ता सालों पुराना है। आतंकवादी संगठनों की गतिविधियों ने इस प्रदेश के वास्तविक चेहरे को बिगाड़ने का काम किया। भारत के सिरमौर इस स्वर्ग की सरजमीं पर दनदनाने वाले सैंकड़ों आतंकवादी सालभर में मारे जाते हैं उनके नापाक मंसूबे नाकायमयाब होते है और उनसे लाखों रूपये के विदेशी हथियार भी बरामद होते हैं। जाहिर है यह सुखद पहलू है, लेकिन दुखद पहलू यह भी है कि आतंकवादियों के खिलाफ होने वाली कार्रवाई में भारत माँ के लाल भी शहीद हो जाते हैं। कश्मीर के आवाम का तो दहशत व खौफ से चोली-दामन का साथ है। उनके दिल-ओ-दिमाग पर हर वक्त एक अंजाना सा खौफ तारी रहता है। आतंकवादियों की बंदूके कब किसके सीने को छलनी कर दें इस बात को कोई नहीं जानता। कड़वी हकीकत यह है कि आये दिन होने वाली घटनाओं की जनता व पुलिस दोनों ही आदि हो चुके हैं। सितम्बर के महीने में हल्की ठंडक के साथ ही मौसम गुलाबी सा हो चला था। 28 सितम्बर,2009 की सुबह राजौरी जिले के समूच...
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तेजाब की जली एक पाकिस्तानी लड़की की दास्तां- बदसूरती बनी मिसाल -नितिन सबरंगी (प्रकाशित महानगर कहानियाँ, फरवरी,2010) बिस्तर पर पड़ी सारिया शून्य को निहार रही थी। उसके लिये जैसे जिंदगी के मायने ही खत्म हो गए थे। शरीर में पैदा होने वाली बेहद जलन, दर्द व बेबसी से वह रू-ब-रू हो रही थी। उसके हजारों ख्वाब तिनका-तिनका हो चुके थे जिन्हें समेटना अब नामुमकिन था। तेजाब की एक बौछार ने उसकी खूबसूरती को जलाकर ध्ुंआ-ध्ुंआ कर दिया था। सारिया की आँखों के आंसू जब तक रहते साथ देते पिफर खुद ही जैसे रूखसत हो जाते। पिछले कई दिनों से अस्पताल का बर्न वार्ड उसकी दर्दीली चीखों से रह-रहकर दहल उठता था। उसके दिन-ओ-रात बिस्तर पर ही होते थे। प्रतिदिन डॉक्टर आते थे ओर उसके चेहरे की पट्टियां बदलकर चले जाते थे। सारिया के परिजन, नाते-रिश्तेदार उसके ठीक होने की दुआएं कर रहे थे। गमजदा व सोच में डूबी सारिया को देखकर साये की तरह उसके साथ लगी श्रीमती रूबीना ने उसे संभालने का प्रयास किया,‘‘सब्र करो बेटी अल्लाह तआला सब ठीक कर देगा।’’‘‘अब क्या ठीक होगा अम्मी। मैंने किसी का क्या बिगाड़ा था जो मुझे ऐसी सजा मिली। क्या खुदा अपने...