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शक्तिमान तो देवभूमि से चला गया, अपने पीछे सवाल छोड़ गया

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शक्तिमान! तुम्हारा जाना बहुत दुःख दे रहा है। मैंने अभी तक देवभूमि के जो मामले लिखे वह ऐसे अपराध थे जो इंसानों ने इस दूसरे के खिलाफ किए थे। उनमें वह चीखे थे, चिल्लाये थे, बयान दिए थे। पुलिस के रोजनामचे और विवेचनाओं ने बहुत कुछ बयां किया था, लेकिन तुम्हारा दर्द उन सबसे बड़ा है इसलिए बयां करना मुश्किल है। तुम एक सियासतदान की कथित बहादुरी और गंदी राजनीति का शिकार हो गए। न चीख सके, न चिल्ला सके, न बचाव कर सके न कोई वार। क्योंकि तुम्हें तो इसकी बाजीगरी ही नहीं आती थी। तुमने तो पुलिस की ट्रेनिंग में वफादारी और हुनर सीखा था। तुम्हें सिखाया ही नहीं गया था कि कोई इंसान यदि जानवर बन जाए, तो उससे किस तरह पेश आया जाए। कोढ़ग्रस्त इंसानियत पर तुम हैरान थे। तुम्हारा बेजुबान होना जान पर बन आया। तुम्हारे साथ सब सरेआम हुआ था। कोई वारदात यूं होती तो तस्वीर दूसरी होती परन्तु तुम्हारे मामले में कानून का लचीलापन था। 13 मार्च से अब तक तुमने बहुत दर्द सहा। हम सिर्फ उस तड़प को महसूस ही कर सके। तुम्हें बचाने की हर संभव कोशिशें कीं, जिंदगी सलामत रहे इसलिए न चाहते हुए भी तुम्हारे पैर को भी जिस्म से जुदा करना मज...

'मैं आतंकवादी नहीं: संजय दत्त'

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यरवडा जेल से रिहा हुए फ़िल्म अभिनेता संजय दत्त ने मीडिया से आग्रह किया है कि ष्मैं आतंकवादी नहीं हूं अब 1993 के धमाकों से मुझे नहीं जोड़ेंण्ष् अवैध हथियार रखने के दोषी पाए गए 56 साल के संजय दत्त मई 2013 से जेल में थे जहां वह 42 महीने रहेण् 2007.08 के बीच उन्होंने जेल में 18 महीने बिताए थेण् साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पेशल कोर्ट के उस आदेश पर मुहर लगाई थी जिसमें उन्हें कुल पांच साल की क़ैद सुनाई गई थीण् यरवडा जेल से बाहर निकलकर ज़मीन को चूमने और तिरंगे को सलाम करने पर उन्होंने कहाए ष्ये धरती मेरी मां हैए मैं हिंदुस्तान की धरती को प्यार करता हूं और मुझे भारतीय होने पर गर्व हैए इसीलिए मैंने अपनी सज़ा काटीण्ष् संजय दत्त ने कहा कि 23 साल से वे जिस आज़ादी के लिए तरस रहे थे वो आज उन्हें मिल गई हैण् उन्होंने कहा कि आज के दिन वो सबसे अधिक अपने पिता सुनील दत्त को श्मिसश् कर रहे हैंण्

आरक्षण के लिए क्या यह भी जरूरी है? देश तो अपना ही होता है

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-पिछले दिनों पूरा हरियाणा जाट आरक्षण की आग में धधकता नजर आया। वह सब हुआ जो कल्पनाओं से थोड़ा अलग था। सड़कों से लेकर रेल पटरियों तक पर लोग उतरे थे। कई बसों, कारों अन्य वाहनों, दुकानों, शोरूम, कारखानों, थाने, पुलिस चौकियों, पैट्रोल पम्पों, स्कूलों तक को आग के हवाले कर दिया गया। सैंकड़ों लोग बेरोजगार हो गए। हर तरफ दहशत का आलम था, खौफ था और जिंदगियों का डर भी। जमकर लूटपाट भी हुई। स्कूल कालेज बंद कर दिए गए। जब यह सब हुआ तब कानून के पहरेदार तमाशा देखकर कांप रहे थे। अराजगता के इस तांडव में जिनकी दुकानें प्रतिष्ठान बच गए वह खुद को खुशनसीब किन्तु डरा हुआ मान रहे हैं। हालात इस कदर बिगड़े कि सरहदों पर रक्षा करने वाली सेना को मोर्चा संभालने के लिए बुलाना पड़ा। हालात सामान्य हुए हैं, लेकिन अपने पीछे ढेरों सवाल और दर्द छोड़ रहे हैं। जिनके जवाब वक्त की गर्त में खो जाएंगे। आरक्षण की मांग के नाम पर चले आंदोलन में अरबों की संपत्ति खाक, दहशत, खौफ, अराजगता और कानून के तमाशे के बीच हरियाणा आरक्षण की आग में वर्षों पीछे चला गया है। बात आरक्षण के पक्ष या विपक्ष की नहीं सवाल यह कि लूटपाट, हिंसा करने वाले, स्टे...