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हुजूर! 42 कत्ल के कातिल भी तो होंगे?

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- पीड़ितों के दर्द पर जमकर होती रही सियासत। - हाशिमपुरा कांड में 28 साल बाद आया फैसला। -नितिन शर्मा ‘सबरंगी’ 1987 में मेरठ दंगे के दौरान हुए बहुचर्चित हाशिमपुरा कांड में 42 लोगों की मौत पर दिल्ली की तीस हजारी अदालत ने सबसे पुराने पेंडिंग केस में फैसला देकर सभी 16 आरोपियों को बरी कर दिया। 3 आरोपियों की मौत फैसले से पहले ही हो गई। फैसला हैरानी व नाखुशी दे रहा है। अदालत के दहलीज के बाहर यह हैरानी जरूरी भी है क्योंकि मानवता को शर्मसार करने वाले कांड में 28 साल बाद आये फैसले में भी कोई दोषी नहीं मिला। सरकारी तंत्र  ओर पैरवी के नकारेपन का इससे बड़ा सुबूत भला ओर क्या होगा। सवाल यह कि कत्ल हुए तो कातिल भी तो होंगे, लेकिन अदालती फैसले सुबूतों ओर गवाहों  की रोशनी में आते हैं। कानून भावनाओं से नहीं चलता वरना मौत का मंजर देखने वाली आँखों में इंसाफ की तड़प जरूरी दिखती। मांओं ओर बेवाओं का दर्द भी दिखता। रोजी-रोटी का संकट, घर के चिरागों के बुझने से हुआ अंधेरा ओर दुआओं में सिर्फ इंसाफ मांगते बूढे माँ-बाप दिखते। हाँ राजनीति के बाजीगर ऐसे दर्द को वोटों के मुनाफे के लिए वक्त-वक्त पर जरूर ...