
‘मुफ्त’ के सपनों की बड़ी चुनौती -जनतंत्र उम्मीदों के जहाज पर सवार -जनता के तराजू में संतुलित होना जरूरी। -नितिन शर्मा ‘सबरंगी’ दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल की जीत को प्रचंड, अविश्वसनीय, अद्भुत या अप्रत्याशित कुछ भी नाम दीजिए, लेकिन जनतंत्र ने उम्मीदों से उन्हें अपने राज्य के मुखिया के रूप में चुन लिया। यकीनन यह एक लहर थी जो अचानक नहीं बल्कि तब आयी जब जनता की सही नब्ज को पकड़ा गया। उसके बताया गया कि ‘मै आप हूं, वह करूंगा जो आप चाहते हो।’ जनतंत्र सबसे बड़ी ताकत है इसलिए सत्ता के ताज के ख्वाहिशमंद को पहले उसके सामने झुकना पड़ ता है। जनता बड़ी उम्मीदों से वोटों का ताज देती है। बेचारगी के हालातों में उसका यही इकलौता हथियार होता है। जनतंत्र की ताकत को हासिल करने के लिये केजरीवाल ने तमाम आलोचनाओं, धरनों, बयानबाजियों, टकराव ही नहीं बल्कि थप्पड़ और काली स्याही का भी सामना किया। सभ्य समाज व स्वस्थ लोकतंत्र में वार व काली स्याही जैसी हरकतें निदंनीय थीं। जनता की उम्मीदों को हद दर्जे तक जगाया गया। यह हुनर ही सही, लेकिन केजरीवाल ऐसे हुनर के बाजीगर हैं जो सबकुछ बदलने की बात क...