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माफ करना दामिनी! हम भी गुनाहगार हैं! दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की राजधानी दिल्ली की बस में रूह कंपा देने वाली दरिंदगी का शिकार हुई दामिनी आखिर इस दुनिया से रूखसत हो गई। वह भी तक जब वह जीना चाहती थी। उसने लिखकर कहा था-‘माँ मैं जीना चाहती हूं।’ दुःख व गुस्से का गुबार हर भारतीय के दिल में है। पूरी घटना कोढ़ग्रस्त इंसानियत की ऐसी नंगी हकीकत है, जो हमेशा शर्मसार करती रहेगी। कड़वी हकीकत है कि लड़कियां महफूज नहीं हैं और लोग बेटियां पैदा करने से भी डरते हैं। आबादी के लिहाज से दुनिया में दूसरे नंबर वाले भारत में हालात ज्यादा शर्मनाक हैं। ऐसी घटनाओं पर अरब के सख्त कानून की जरूरत याद आती है। दुनिया में सबसे कम अपराध वहीं होते हैं।  इस हकीकत का स्वीकार कर लेना चाहिए कि ऐसे लोगों को कानून का खौफ नहीं है?  छेड़छाड़ के मामलों में तो देश के अधिकांश हिस्सों में हालात एक जैसे हैं। इस पीड़ा को नजदीक से महसूस करना है, तो उन कामकाजी महिलाओं व लड़कियों से बात करिये जो प्रतिदिन सफर से लेकर कार्यालय तक में मानसिक यंत्रणा सहती हैं। कुंठित मानसिकता वाले उजले चेहरे वाले भी इस मामले में पी...