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रेल हादसा, कौन है आखिर मौतों का जिम्मेदार? -जांच, मुआवजा और राजनीति का तमाशा कब तक। तूफानी गति से दौड़ती कालका एस्सप्रेस कानपुर के नजदीक अचानक लगे ब्रेक से पटरी से उतर गई। डब्बे क्षतिग्रस्त हो गए। इसके साथ ही मची चीख-पुकार ने पत्थर दिलों को भी दहला दिया। डब्बों से निकलती खून से लथपथ लाशों में तब्दील हुए यात्रियों और मौत को बेहद करीब से देखने वाले घायलों ने सोचा भी नहीं था कि उनका सफर इस कदर खौफनाक होगा। कई घरों के चिराग बेवक्त हमेशा के लिये बुझ गए। सरकार ने मरहम के तौर पर मुआवजे की घोषणा करके मौतों की कीमत लगा दी। कुछ इस तरह कि ‘हम सबक नहीं लेंगे। गलती तो हुई है, लेकिन कीमत भी तो दे रहे हैं।’ जिनके घरों के चिराग बुझ गए उनके दर्द की दवा पैसा नहीं। जांच की बात भी हो गई। जाहिर है जांच, मुआवजा और राजनीति का जमकर तमाशा होगा। जांच के नतीजे रसूखदारों के इशारों पर नाचकर हमेशा की तरह फाइलों में दफन हो जायेंगे। लाशों की कीमत लगाने की मानसिकता में हादसों से सबक लेने का काम किया भी नहीं जाता। अफसोसजनक ही सही, लेकिन इस परंपरा को इस कदर ईमानदारी से निभाया जाता है कि किसी एक हादसे के जख्म भरते नहीं ओर...