सलमान खानः शिकार से सजा तक, कानून सभी के लिए बराबर


लंबी जद्दोजहद के बाद हिट एंड रन मामले में आखिर दोषी पाए जाने के बाद बॉलीवुड स्टार सलमान खान के हक में अदालत ने 5 साल की सजा
मुकर्रर कर दी। इसको लेकर बहस शुरू हो गई। वास्तव में अदालत सबूतों और गवाहों पर काम करती है नकि भावनाओं का कोई स्थान होता है। इंसाफ के प्रति लोगों की उम्मीदों का चिराग और रोशन हुआ है। सभी को कानून का सम्मान करना चाहिए। नेता, अभिनेता, आम आदमी कानून तो सभी के लिए बराबर है। यह ठीक है कि सलमान अभिनेता हैं, लोगों के दिलों में उनके लिए जगह हैं, लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि उन्हें कुछ भी करने की आजादी हो या पुराने गुनाहों पर पर्दा डाल दिया जाए। सलमान चूंकि रॉल मॉडल हैं इसलिए उनकी जिम्मेदारी कानून का पालन करने की ज्यादा हो जाती है। अजीब तर्क दे रहे हैं लोग। कोई कहता है कि सलमान गरीब बच्चों की बहुत मदद करते हैं, उनका ख्याल रखते हैं। वह बहुत अच्छे हैं। भला इन सब बातों का केस से क्या मतलब। इस आधार पर क्या उन्हें छूट मिलनी चाहिए थी। सलमान जो भी करते हैं उसकी रकम लेते हैं। ऐसा सक्षम व्यक्ति यदि गरीब बच्चों की मदद करता है, तो यह बहुत अच्छा है। जो भी सक्षम हैं उन्हें ऐसा करना चाहिए। फैसले से गायक अभिजीत बौखला गए। उन्होंने गरीबों की तुलना कुत्तों से करके शर्मनाक बयान दे दिया। उन्होंने कहा कि ‘कुत्ता अगर रोड़ पर सोएगा तो कुत्ते की मौत मरेगा। रोड गरीबों के बाप की नहीं है......’ उनका आशय यह कि गरीबों को फुटपाथ पर नहीं सोना चाहिए। हैरानी है उनकी संवेदनहीन सोच पर। जाहिर है कड़ाके की ठंड या जून की गर्मी में कोई खुशी से फुटपाथ पर नहीं सोता। सलमान को भी किसने कहा कि वह शराब पीकर कार चलाएं और सड़क की जगह फुटपाथ पर चढ़ा दें। इन सब बातों के मायने इसलिए नहीं हैं क्योंकि अदालत ने अपना काम किया है। चर्चा इस पर नहीं कि सलमान को सजा हो गई बल्कि चर्चा इस पर हो कि फैसले में देरी क्यों हुई? उन्हें जिस तरह सजा के बाद अन्तरिम जमानत चंद घंटों में मिल गई वह गरीबों के मामले में क्यों नहीं होता? तारीफ करनी चाहिए पुलिस के उन कारिंदों की जिन्होंने रसूख को नजरंदाज करके अपना काम ईमानदारी से किया। यदि उन्होंने ईमानदारी नहीं बरती होती, तो यकीनन इतनी सजा भी नहीं होती। अपनी कार्यप्रणाली को अक्सर आलोचनाओं की शिकार होने वाली पुलिस इस मामले में अलग साबित हुई। कौन नहीं जानता कि रसूखदार किस तरह कानून का तमाशा बनाकर उसे कठपुलती बनाने की सोच के राजा होते हैं। वह खुद को कानून से बड़ा मानते हैं। कानून के रखवालों को चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। सजा से उन लोगों को खुशी हुई है, जिन्होंने पीड़ा को सहा है। हां दुर्भावना या अन्य किसी विशेष कारण से सजा पर खुश होना शर्मनाक जरूर है। अदालत का फैसला न सिर्फ एक नजीर है बल्कि उन लोगों के लिए एक सबक भी है जो शराब पीकर गाड़ी चलाना शान का विषय समझते हैं। सरकारी आंकड़ों पर ही गौर कीजिए भारत में सड़क दुर्घटनाओं की सबसे बड़ी वजह शराब है। नशे में वाहन चलाने को लेकर कानून तो है, लेकिन उसका गंभीरता से पालन नहीं होता और यदि पुलिस सख्ती करती है, तो वह अखरता है। लोग खुद ही इसका पालन नहीं करना चाहते। इस तरह सजाएं होंगी, तो लोगों में डर पैदा होगा। जो हुआ सलमान की गलती थी उन्हें गलती पर ही सजा हुई है। वह रोल मॉडल हैं। उन्हें तो अब खुद सामने आकर विज्ञापन करने चाहिए कि शराब पीकर वाहन न चलाएं, इससे दूसरों की जान को खतरा हो सकता है और खुद कानून के फंदे में फंस सकते हैं। वैसे भी हीरो से लोग जल्दी सीखते हैं।

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