बंदूक वाले मास्टर जी
उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में नरभक्षी गुलदारों, तेंदूओं ओर बाघों का आतंक कोई नई बात नहीं है। बच्चों व बड़ों को वह अपना शिकार बनाते रहते हैं। लखपत सिंह रावत पेशे से शिक्षक थे। उन्हें सपनों में भी बच्चों की चीखें सुनायी देती थीं। वर्ष 2000 में उत्तराखंड का चमोली जिला नरभक्षी गुलदार से आतंकित हुआ, तो बड़े-बड़े शिकारी आये, लेकिन नरभक्षी इतना चालाक हो गया कि दो साल तक वह मारा नहीं जा सका। वह 12 बच्चों का अपना निवाला बना चुका था। तब लखपत सिंह ने सरकार से जिद करके नरभक्षी को मारने का परमिट लेकर कलम थामने वाले हाथ में बंदूक ली और उसे मार गिराया। इस शिक्षक ने मौत से सामना करने के लिये बंदूक थामी तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। अब तक यह शिक्षक उत्तराखंड के चमोली, टिहरी, पौड़ी, चंपावत, बागेश्वर, रूद्रप्रयाग, उत्तरकाशी व देहरादून आदि जिलों में दर्जनों नरभक्षियों को मार चुका है। उन्होंने नरभक्षियों पर शोध भी किया। उनके असामान्य व्यवहार के कारणों को जाना ओर लोगों को बचाव के उपाय भी बताये। लखपत सिंह को आज लोग बंदूक वाले मास्टर के नाम से जानते हैं। (पूर्ण कहानी मनोहर कहानियाँ के अप्रैल,2010 अंक में प्रकाशित) जंगल के शानदार जानवरों को मारकर वह अफसोस भी जाहिर करते हैं ओर उसके नरभक्षी बनने के मुकाम के पीछे इंसान को ही जिम्मेदार बताते हैं।.......

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