इंतकाम की आग
-नितिन सबरंगी
(बिजनौर यूपी का बहुचर्चित कांड) दुनिया की तमाम हलचल से बेखबर पूरा गांव नींद के आगोश में था। रात्रि का दूसरा पहर शुरू हो चुका था। वक्त तो नींद का ही था, लेकिन 17 साल की फातिमा व उसके पिता अख्तर की आँखों से नींद कोसों दूर थी। दोनों के ही मनों में तूफान सा उठ रहा था। एक ऐसा तूपफान जो शांत होने का नाम नहीं ले रहा था। उसके दिल-ओ-दिमाग पर पंचायत और उसके फैसले की यादें रह-रहकर ताजा हो रहीं थीं। अपमान व तिरस्कार ने उन्हें झकझोर दिया था। करवटेें बदल-बदलकर दोनों को कब नींद आ गई इसका पता उन्हें भी नहीं चल सका। फातिमा ने जो कुछ भी देखा था वह दिल को दहला देने वाला था। वह अपने पिता के कमरे में सो रही थी। तभी उनका पड़ोसी राशिद व उसका बड़ा भाई हसीनुद्दीन दबे पांव वहां आ गये। कुछ आवाज सुनकर उसकी आंख खुली तो देखा तो उनके हाथों में खून से सनी कटार चमचमा रही थी और वह खा जाने वाली नजरों से उसे घूर रहे थे। फातिमा की निगाह जमीन पर पड़ी तो हलक से चीख निकल गई। खून से लथपथ उसका पिता अख्तर जमीन पर पड़ी किसी मछली की तरह तड़प रहा था। फातिमा से यह सब देखा नहीं गया वह फुर्ती से खड़ी हुई और उसने राशिद का गिरेबान थाम लिया,‘‘यह तुमने क्या किया मेरे अब्बू को मार डाला अल्लाह तुम्हें कभी माफ नहीं करेगा।’’‘‘हां हमने इसकी मौत के परवाने पर दस्तखत कर दिये, क्योंकि यह हमारा नहीं पंचायत का फैंसला था। पंचायत ने जो हुक्म दिया हमने उसकी तामील कर दी है।’’‘‘ये तो बेगुनाह हैं। आरोप ओर पंचायत तो तुम लोगों की साजिश थी।’’ उसने रोते हुए कहा तो राशिद बेहयाई से हंसते हुए बोला,‘‘पंचायत के फैंसले को साजिश का नाम मत दे फातिमा। तुम्हारी जगह कोई ओर लड़की होती तो अब तक शर्म से मर जाती। तू सोई रहती तो मरने में दिक्कत नहीं होती अब तू तड़पकर मरेगी।’’ कहने के साथ ही उसने फातिमा को जोरदार धक्का दिया वह  कटे पेड़ की तरह जमीन पर गिर गई। उसे अपने सामने मौत नाचती नजर आ रही थी। हसीनुद्दीन ने आगे बढ़कर फातिमा के दोनों हाथो ंको पीछे से कब्जा लिया, तो राशिद दहाड़ा,‘‘तुम्हें मरना ही है। अल्लाह से दुआ है वह तुम्हारी रूह को सुकून पहुंचाये।’’ कहते हुए उसने खंजर फातिमा के सीने में घोंप दिया ओर......(मनोहर कहानियाँ, फरवरी,2010 अंक में प्रकाशित) पूर्ण स्टोरी के लिये मेल 

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