आरक्षण के लिए क्या यह भी जरूरी है? देश तो अपना ही होता है


-पिछले दिनों पूरा हरियाणा जाट आरक्षण की आग में धधकता नजर आया। वह सब हुआ जो कल्पनाओं से थोड़ा अलग था। सड़कों से लेकर रेल पटरियों तक पर लोग उतरे थे। कई बसों, कारों अन्य वाहनों, दुकानों, शोरूम, कारखानों, थाने, पुलिस चौकियों, पैट्रोल पम्पों, स्कूलों तक को आग के हवाले कर दिया गया। सैंकड़ों लोग बेरोजगार हो गए। हर तरफ दहशत का आलम था, खौफ था और जिंदगियों का डर भी। जमकर लूटपाट भी हुई। स्कूल कालेज बंद कर दिए गए। जब यह सब हुआ तब कानून के पहरेदार तमाशा देखकर कांप रहे थे। अराजगता के इस तांडव में जिनकी दुकानें प्रतिष्ठान बच गए वह खुद को खुशनसीब किन्तु डरा हुआ मान रहे हैं। हालात इस कदर बिगड़े कि सरहदों पर रक्षा करने वाली सेना को मोर्चा संभालने के लिए बुलाना पड़ा। हालात सामान्य हुए हैं, लेकिन अपने पीछे ढेरों सवाल और दर्द छोड़ रहे हैं। जिनके जवाब वक्त की गर्त में खो जाएंगे। आरक्षण की मांग के नाम पर चले आंदोलन में अरबों की संपत्ति खाक, दहशत, खौफ, अराजगता और कानून के तमाशे के बीच हरियाणा आरक्षण की आग में वर्षों पीछे चला गया है। बात आरक्षण के पक्ष या विपक्ष की नहीं सवाल यह कि लूटपाट, हिंसा करने वाले, स्टेशन, थाने, शोरूम, दुकानें, वाहन, कारखानें जलाने भी क्या जरूरी होते हैं? यह पहली बार नहीं हुआ। कभी गुर्जर आंदोलन, कभी पटेल आंदोलन तो कभी कोई ओर आंदोलन। मांग उठने के साथ ही जनता की तकलीफों में इजाफा हो गया। आम जनता को मिलने वाली तकलीफों और दर्द का हिसाब कठिन होता है। यही वजह है कि सरकारी आंकड़ों में इसकी गिनती नहीं होती। भाईचारा, विश्वास और सुरक्षा का भरोसा भी टूटा है। हजारों करोड़ के नुकसान की भरपाई कब होगी कोई नहीं जानता। ऐसे तांडव से आरक्षण मिलता भी है, तो यह सब नुकसान आखिर किसका होता है?

टिप्पणियाँ

  1. उपद्रवियों के शर्मनाक सच सामने आ रहे हैं। बिखरी जिंदगियां जीने का हौंसला मांग रही हैं। हरियाणा में जाट आंदोलन और गुजरात में पटेल आंदोलन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाने की घटना को सुप्रीम कोर्ट ने गंभीरता से लिया है। शीर्ष कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि अपने आंदोलन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले लोगों और राजनीतिक दलों से नुकसान की भरपाई की जानी चाहिए।

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