खाप पंचायत ने पति-पत्नी को भी बना दिया भाई-बहन
दुनिया की तमाम हलचल से बेखबर दस महीने का मासूम रौनक गहरी नींद के आगोश में था। इसके विपरीत कविता के मन में तूपफान उठ रहा था। एक ऐसा तूफान जो शांत होने का नाम नहीं ले रहा था। वह ऐसे भंवर में उलझी हुई थी जिससे वह निकलना चाहती थी। यह भंवर था वक्त और उसकी जिंदगी। सुहागन होकर भी वह खुद को विधवा महसूस कर रही थी। उसके दिल-ओ-दिमाग पर शादी से लेकर खाप पंचायत के फैसले की यादें रह-रहकर ताजा हो रहीं थीं। नींद उसकी आंखों से कोसों दूर थी। कभी वह रौनक को देखती तो कभी शून्य को निहारने लगती। यह सिलसिला घंटों चलता रहा। वह खुद को दुनिया की सबसे बदनसीब विवाहिता समझ रही थी। सामाजिक व्यवस्था, पुरातन मान्यता व गोत्रा विवाद ने उसे ऐसा झटका दिया कि जिस पति के साथ वह ढाई साल से सुखद वैवाहिक जीवन व्यतीत कर रही थी उसी पति के साथ उसका रिश्ता भाई-बहन का बना दिया गया। जो सतीश कल तक रौनक का पिता था वह मामा बन गया। पंचायत का फरमान भले ही तुगलकी ओर दिलों को कभी न भरने वाले जख्म देने वाला था, लेकिन सामाजिक बहिष्कार के डर से उसे मानना सभी की मजबूरी थी। कविता के पति को भी सजा का दंश झेलना पड़ा था। उसे न सिर्फ गांव से निकाल दिया गया था बल्कि चल-अचल संपत्ति से भी बेदखल कर दिया गया था। सरेआम हुए अपमान ने कविता को झुलसा कर रख दिया। 30 जनवरी की रात कविता को पूरी रात नींद नहीं आ सकी। सुबह का आगाज सुखद माना जाता है, लेकिन कविता तो जैसे जिंदा लाश बन चुकी थी। उसका चेहरा भावहीन था और उदासी के बादल भी मंडरा रहे थे। फैंसला देने वाले समाज के कथित ठेकेदार कह रहे थे कि उन्होंने इंसाफ कर दिया। कविता आखिर ऐसे हालात से कैसे रू-ब-रू हुई इसके पीछे भी एक वजह थी....(सत्यकथा अप्रैल,2010 अंक में प्रकाशित)

टिप्पणियाँ

  1. agar ye sach hain to behad bhayanak hain.....phaisla karne walon ne nhi socha ki kavita agar unki beti hoti to????
    aur hum kahate hain ki hum unnati ke path par hain aur 21 vi sadi me jee rahe hain.....dimplerahi

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